मशक़्क़त / मजदूर / बच्चा लाल 'उन्मेष'
मशक़्क़त
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मैं मजदूर हूँ!
कभी मौका मिला तो
बनाकर मजदूर भेजूंगा
कहूंगा खुद ही बना लो
अपने मन्दिर और मस्जिद
शायद समझ पाओ
दुनिया बनाना आसान है
दुनिया बसाने से कहीं..
मैं किसान हूँ!
कभी मौका मिला तो
बनाकर किसान भेजूंगा
कहूंगा खुद ही उगा लो
अपने अक्षत के दाने
शायद समझ पाओ
ईश्वर होना आसान है
किसान होने से कहीं..
मैं इंसान हूँ!
कभी मौका मिला तो
बनाकर इंसान भेजूंगा
किसी दलित बस्ती में
कहूंगा जी कर दिखाओ
तमाम भेदभावों के साथ
शायद समझ पाओ
यहाँ इंसान बनना दूभर है
इंसान होने से कहीं..
मैं वनवासी हूँ!
कभी मौका मिला तो
बनाकर वनवासी भेजूंगा
कहूंगा बचा कर दिखाओ जंगल
पूंजीवाद की आरी से
शायद समझ पाओ
जंगल उगाना आसान है
एक पेड़ बचाने से कहीं..
मैं औरत हूँ
कभी मौका मिला तो
बनाकर औरत भेजूंगी
कहूंगी अब पहचान बनाओ
तमाम बंदिशों से लड़कर
शायद समझ पाओ
आदमी होना आसान है
औरत होने से कहीं...
~बच्चा लाल 'उन्मेष'
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