#महिला / #नारी /#औरत #तुम्हें_डर_हैं / त्रिलोकी
लाॅकडाउन के दौरान 31/03/2020 को मेरे द्वारा रचित एक कविता जो रमाशंकर यादव 'विद्रोही', गोरख पाण्डेय,ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचनाओं से प्रेरित है । आज 'अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस' के अवसर पर आपके समक्ष पेश है --
तुम्हें डर हैं
कि वे अपनी कौमार्यता
भंग होने का नहीं देंगी प्रमाण ।
नहीं लगायेंगी माथे पर निशान ।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन सिंदूर लगाना छोड़ देंगी।1।
तुम्हें डर हैं
कि वे अपनी रफ़्तार
को नहीं लगायेंगी लगाम ।
लम्बे कदमों से तुम्हें करेंगी परेशान।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन साड़ी पहनना छोड़ देंगी।2।
तुम्हें डर हैं
कि वे अपने आने -जाने
का नहीं देंगी अपराधी पैग़ाम।
नहीं सुनाएगी पाजेब की झंकार।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन पायल पहनना छोड़ देंगी।3।
तुम्हें डर हैं
कि वे अपनी बेबसी
की नहीं रखेंगी पहचान।
नहीं होगी वे बेबस और लाचार।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन लंबे बाल रखना छोड़ देंगी।4।
तुम्हें डर हैं
कि वे अपनी यातना, दुर्दशा
की नहीं पहनेंगी खुद जंजाल।
नहीं गिड़गिड़ाएगी , नहीं लगायेंगी गुहार।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन हसुली,बाली,नथुनी पहनना छोड़ देंगी।5।
तुम्हें डर हैं
कि वे अपनी बातों, मुस्कुराहटों
अभिव्यक्ति की एवज में
झूठी पूजन नहीं करेंगी स्वीकार।
निर्भीक हो करेंगी विहार।
तुम्हें डर हैं
कि वे एक दिन चुप रहना छोड़ देंगी।6।
तुम्हें डर हैं, त्रिलोकी!
कि अपनी गुलामी
की खुद न बनेगी जिम्मेवार।
स्वतंत्र रहेगी, लंबे पेंगें लगाएंगी
बढ़ाएगी अपनी रफ़्तार।
अपराधी सूचना नहीं,
अब मारेगी दहाड़।
जुल्फ नहीं, होंगे बाल
नाथ-पगहा , न होंगे लगाम।
गरजकर वे शेर का भी सीना देंगी फाड़।
बस! अब बहुत हुआ !
याद करों !
क्या हुआ इनका अंजाम ?
सत्ती,
देवदासी,
स्तन-कर ।
बसवी*, कौमार्य - परीक्षण,
स्वयंवर ।
जौहर
का अत्याचार।
हो गए सब नाकाम।
तो फिर,
दहेज, भ्रूण-हत्या, बाल-विवाह ।
घूंघट, सम्मान-हत्या, बहु-विवाह ।
इनकी क्या है औकात ।
बस ! अब बहुत हुआ अत्याचार ।
तुम्हारे झूठे रिति-रिवाजों,
परम्पराओं को तोड़ देंगी।
पितृसत्ता को मरोड़ देंगी।
गुलामी की बेड़ियां तोड़ देगी।
तुम्हें डर हैं , त्रिलोकी!
कि वे एक दिन तुमसे डरना छोड़ देंगी ।7।
- त्रिलोकी
* बसवी --- देवदासी जैसी प्रथा
# सम्मान-हत्या --- ऑनर किलिंग
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