'औरत ' नुक्कड़ नाटक - जन नाट्य मंच/सफदर हाशमी /ईरानी कविता - मर्जिया उस्कुई अहमदी
मैं एक माँ
एक बहन
एक अच्छी पत्नी
एक औरत हूँ ।
एक औरत जो न जाने कब से
नंगे पांव रेगिस्तानों की धधकती बालू में
भागती.. ..... रही है।
मैं सुदूर उत्तर के गाँवों से आयी हूं
एक औरत जो न जाने कब से
धान के खेतों और चाय के बागान में
अपनी ताकत से ज्यादा मेहनत करती आयी है।
मैं पूरब के अंधेरे खंडहरों से आयी हूँ
जहाँ मैंने न जाने कब से नंगे पाँव
अपनी मरियल गाय के साथ खलिहानों में
दर्द का बोझ उठाया है।
उन बंजारों में से
जो तमाम दुनिया में भटकते फिरते हैं।
एक औरत जो पहाड़ों की गोद में बच्चे जनती है
जिसकी बकरी मैदानों में कहीं मर जाती है
और बैन करती रह जाती है।
मैं वह मजदूर औरत हूँ
जो अपने हाथों से फैक्ट्री में
भीमकाय मशीनों के चक्के घुमाती है
वह मशीनें जो उसकी ताकत को
ऐन उसकी आँखों के सामने
हर दिन नोंचा करती है
एक औरत जिसके खुने जिगर से
खूंखार कंकालों की प्यास बुझती है,
एक औरत जिस का खून बहने से
सरमायेदार का मुनाफा बढ़ता है।
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहया शब्दावली में
एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्व को बयान कर सके
तुम्हारी शब्दावली केवल उसी औरत की बात करती हैं
जिसके हाथ साफ हैं
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम
और जिसके बाल खुशबूदार हैं।
मैं तो वह औरत हूँ
जिसके हाथों को दर्द की पैनी छुरियों ने
घायल कर दिया है
एक औरत जिसका बदन तुम्हारे अंतहीन
शर्मनाक और कमर तोड़ काम से टूट चुका है।
एक औरत जिसकी खाल में
रेगिस्तानों की झलक दिखाई देती है।
जिसके बालों में फैक्ट्री के धुएँ की बदबू आती है।
मैं एक आजाद औरत हूँ
जो अपने कामरेडों, भाइयों के साथ
काँधे से काँधा मिला कर
मैदान पार करती है ।
एक औरत जिसने मजदूर के
मजबूत हाथों की रचना की है
और किसान की बलवान भुजाओं की।
मैं खुद भी एक मजदूर हूँ
मैं खुद भी एक किसान हूँ
मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग-रग में नफरत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
कि मेरी भूख एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में
एक शब्द भी ऐसा नहीं
जो उसके महत्व को बयान कर सके।
एक औरत जिसके सीने में
गुस्से के फफकते नासूरों से भरा
एक दिल छिपा है।
एक औरत जिसकी आँखों में
आजादी की आग के लाल साये लहरा रहे है।
एक औरत जिसके हाथ
काम करते करते सीख गए हैं
लाल झंडा कैसे उठाया जाता है ।
- ईरानी कविता (मर्जिया उस्कुई अहमदी)
- जन नाट्य मंच (सफदर हाशमी)
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