औरतें/ रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी, ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है । और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं, ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है। मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ क्या जल्दी है । मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ औरतों की अदालत में तलब करूँगा। और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा । मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा , जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं । मैं उन डिग्रियों को भी निरस्त कर दूंगा , जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं । मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा , जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी । मैं उन औरतों को जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर और चिता में जलकर मरी हैं , फिर से ज़िंदा करूँगा और उनके बयानात दोबारा कलमबंद करूँगा । कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया? कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया? कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई? क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ , जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं, और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली जो खुले मे...