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जनवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निम्मो : इरशाद कामिल

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 निम्मो गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन निम्मो की तो शादी हो गयी हार गयी थी दिन गिन गिन… बहुत देर तक रस्ता देखा गाँव को खुद पे हँसता देखा उसे यकीं था लौटोगे तुम पर तुम हो गए शहर में ही गुम टूट गयी फिर वो बेचारी इंतज़ार में हारी हारी खुद से खुद ही गयी वो छिन गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन… एक मोड़ से मिला था कल मैं उसके पास रुका इक पल मैं पूछा कैसे हो तुम भाई कैसे इतने साल बिताई मोड़ बुढा सा हुआ पड़ा था लेकिन फिर भी वहीँ खड़ा था मुझको वो पहचान न पाया मैंने अपना नाम बताया मोड़ ख़ुशी से झूम उठा तब पढ़ा है तेरे बारे में सब हो गए हो तुम बड़े आदमी इन्सां हो या फल हो मौसमी एक साल में एक ही फेरा गाँव में भी इक घर है तेरा निम्मो ये बोला करती थी रोज़ ही जीती थी मरती थी चली गयी वो अब तो लेकिन मोड़ भी मुझसे पूछ रहा है कहाँ रहे तुम इतने दिन… निम्मो गाँव की सड़क थी कच्ची जिसको मेरे बिन रोना ही था इक दिन पक्का होना ही था… अच्छा हुआ की पक्की हो गयी गाँव में चलो तरक्की हो गयी हाँ पर मेरी निम्मो खो गयी…

साठ गाँव बकरी चर गई : नवीन चौरे मुक़म्मल

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  'साठ गाँव बकरी चर गयी' राजा भयंकर सिंह को एक दिन आया विचार ‘बहुत दिनों से नहीं किया शिकार चहल-पहल से दूर, अपने महल से दूर चलते हैं शिकार पे, तलवार की धार पे कोई तो सर आएगा, इस बार एक न एक शेर तो अवश्य मारा जाएगा।‘ बस फिर राजा ने ठान ली, तलवार- म्यान ली मंत्री को बुलाया, बंदोबस्त कराया भयंकर सिंह घोड़े पे सवार, हो गए तैयार; साथ में रख्खे कुत्ते तीन, कारण सुरक्षा, इस बार भयंकर सिंह ने सैनिकों को नहीं बख़्शा हर सैनिक उदास था, तापमान पचास था दिन था शनीचर, जंगल के भीतर कुत्ते गुर्राए, भयंकर सिंह घबराये; घोड़ा ले के सरपट भागे रूककर जो देखा आगे शेर खड़ा था मुँह फैलाये राजाजी पर घात लगाये सन्न रह गए भयंकर सिंह, ना कुछ बोले, ना सुन पाये। सैनिकों ने बचाया, शेर को भगाया, राजा को उठाकर, वापस घोड़े पे बैठाया, शिकार के नाम पे मार के मोर, प्रस्थान किया महल की ओर। किंतु लौटते में रात हो गयी........ लौटते में रात हो गयी, भारी बरसात हो गयी जंगल डरावना, भरपूर संभावना अनहोनी घट जाये, कौन सा संकट आये रास्ता सुनसान था.…… पर राजा को ध्यान था। रास्ता सुनसान था, पर राजा को ध्यान था ‘रहता करीब है आदमी गरीब...