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वोट करो : त्रिलोकी

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 वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। वोट करो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है। वोट करो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है।। वोट करो, खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है। वोट करो, अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है।। वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। सुनो कि प्रस्तावना कहती है : भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक  गणराज्य बनाना है। वोट करो  कि लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक  न्याय दिलाना है।। वोट करो  कि सबको विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता पाना है। वोट करो कि सबके लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समता लाना है।। वोट करो  कि सबमें व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए  बन्धुता बढ़ाना है। वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। वोट करो, कि जो करे काम, उसका अपमान न हो। वोट करो, कि अत्याचार न हो,फिर से हम गुलाम न हो। जानो, ...

मुझको इस आग से बचाओ मेरे दोस्तों ( औरतें ) / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

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  मैं साइमन , न्याय के कटघरे में खड़ा हूं । प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें । मैं वहां से बोल रहा हूं , जहां मोहनजोदाड़ो के तालाब की आखिरी सीढ़ी है । जिस पर एक औरत की जली हुई लाश पड़ी है , और तालाब में इंसानों की हड्डियां बिखरी पड़ी हैं । इसी तरह एक औरत जली हुई लाश , आपको बेबिलोनियां में भी मिल जाएगी । और इसी तरह इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मेसोपोटामियां में भी । मैं सोचता हूं , और बारहा सोचता हूं , कि आखिर क्या बात है कि प्राचीन सभ्यताओं के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश मिलती है । और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मिलती हैं , जिनका सिलसिला सीथिया के चट्टानों से लेकर बंगाल के मैदानों तक , और सवाना के जंगलों से लेकर कान्हा के वनों तक चलता जाता है । एक औरत जो मां हो सकती है , बहिन हो सकती है , बीबी हो सकती है , बेटी हो सकती है , मैं कहता हूं , तुम हट जाओ मेरे सामने से मेरा खून कलकला रहा है । मेरा कलेजा सुलग रहा है मेरी देह जल रही है मेरी मां को, मेरी बहिन को, मेरी बीबी को मेरी बेटी को मारा गया है । मेरी पुरख़िनें , आसमान में आर्तनाद कर रही हैं । मैं इस औरत की जली हुई लाश पर सर पट...

मशक़्क़त / मजदूर / बच्चा लाल 'उन्मेष'

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 मशक़्क़त ------------ मैं मजदूर हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर मजदूर भेजूंगा कहूंगा खुद ही बना लो अपने मन्दिर और मस्जिद शायद समझ पाओ  दुनिया बनाना आसान है दुनिया बसाने से कहीं..  मैं किसान हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर किसान भेजूंगा कहूंगा खुद ही उगा लो अपने अक्षत के दाने शायद समझ पाओ ईश्वर होना आसान है  किसान होने से कहीं..  मैं इंसान हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर इंसान भेजूंगा किसी दलित बस्ती में कहूंगा जी कर दिखाओ तमाम भेदभावों के साथ शायद समझ पाओ यहाँ इंसान बनना दूभर है इंसान होने से कहीं..  मैं वनवासी हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर वनवासी भेजूंगा कहूंगा बचा कर दिखाओ जंगल पूंजीवाद की आरी से शायद समझ पाओ जंगल उगाना आसान है एक पेड़ बचाने से कहीं..  मैं औरत हूँ कभी मौका मिला तो बनाकर औरत भेजूंगी कहूंगी अब पहचान बनाओ तमाम बंदिशों से लड़कर शायद समझ पाओ आदमी होना आसान है औरत होने से कहीं...  ~बच्चा लाल 'उन्मेष'

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो / सफ़दर हाशमी

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 पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलाने वालो अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं? पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं? पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं? पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं? पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो ००००० सफ़दर हाशमी