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निम्मो : इरशाद कामिल

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 निम्मो गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन निम्मो की तो शादी हो गयी हार गयी थी दिन गिन गिन… बहुत देर तक रस्ता देखा गाँव को खुद पे हँसता देखा उसे यकीं था लौटोगे तुम पर तुम हो गए शहर में ही गुम टूट गयी फिर वो बेचारी इंतज़ार में हारी हारी खुद से खुद ही गयी वो छिन गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन… एक मोड़ से मिला था कल मैं उसके पास रुका इक पल मैं पूछा कैसे हो तुम भाई कैसे इतने साल बिताई मोड़ बुढा सा हुआ पड़ा था लेकिन फिर भी वहीँ खड़ा था मुझको वो पहचान न पाया मैंने अपना नाम बताया मोड़ ख़ुशी से झूम उठा तब पढ़ा है तेरे बारे में सब हो गए हो तुम बड़े आदमी इन्सां हो या फल हो मौसमी एक साल में एक ही फेरा गाँव में भी इक घर है तेरा निम्मो ये बोला करती थी रोज़ ही जीती थी मरती थी चली गयी वो अब तो लेकिन मोड़ भी मुझसे पूछ रहा है कहाँ रहे तुम इतने दिन… निम्मो गाँव की सड़क थी कच्ची जिसको मेरे बिन रोना ही था इक दिन पक्का होना ही था… अच्छा हुआ की पक्की हो गयी गाँव में चलो तरक्की हो गयी हाँ पर मेरी निम्मो खो गयी…

साठ गाँव बकरी चर गई : नवीन चौरे मुक़म्मल

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  'साठ गाँव बकरी चर गयी' राजा भयंकर सिंह को एक दिन आया विचार ‘बहुत दिनों से नहीं किया शिकार चहल-पहल से दूर, अपने महल से दूर चलते हैं शिकार पे, तलवार की धार पे कोई तो सर आएगा, इस बार एक न एक शेर तो अवश्य मारा जाएगा।‘ बस फिर राजा ने ठान ली, तलवार- म्यान ली मंत्री को बुलाया, बंदोबस्त कराया भयंकर सिंह घोड़े पे सवार, हो गए तैयार; साथ में रख्खे कुत्ते तीन, कारण सुरक्षा, इस बार भयंकर सिंह ने सैनिकों को नहीं बख़्शा हर सैनिक उदास था, तापमान पचास था दिन था शनीचर, जंगल के भीतर कुत्ते गुर्राए, भयंकर सिंह घबराये; घोड़ा ले के सरपट भागे रूककर जो देखा आगे शेर खड़ा था मुँह फैलाये राजाजी पर घात लगाये सन्न रह गए भयंकर सिंह, ना कुछ बोले, ना सुन पाये। सैनिकों ने बचाया, शेर को भगाया, राजा को उठाकर, वापस घोड़े पे बैठाया, शिकार के नाम पे मार के मोर, प्रस्थान किया महल की ओर। किंतु लौटते में रात हो गयी........ लौटते में रात हो गयी, भारी बरसात हो गयी जंगल डरावना, भरपूर संभावना अनहोनी घट जाये, कौन सा संकट आये रास्ता सुनसान था.…… पर राजा को ध्यान था। रास्ता सुनसान था, पर राजा को ध्यान था ‘रहता करीब है आदमी गरीब...

वोट करो : त्रिलोकी

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 वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। वोट करो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है। वोट करो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है।। वोट करो, खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है। वोट करो, अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है।। वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। सुनो कि प्रस्तावना कहती है : भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक  गणराज्य बनाना है। वोट करो  कि लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक  न्याय दिलाना है।। वोट करो  कि सबको विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता पाना है। वोट करो कि सबके लिए प्रतिष्ठा और अवसर की समता लाना है।। वोट करो  कि सबमें व्यक्ति की गरिमा, राष्ट्र की एकता और अखण्डता के लिए  बन्धुता बढ़ाना है। वोट के अधिकार को जानो,ओ मेहनत करने वालो। वोट का चोट करना सीखो, ओ भूख से मरने वालो।। वोट करो, कि जो करे काम, उसका अपमान न हो। वोट करो, कि अत्याचार न हो,फिर से हम गुलाम न हो। जानो, ...

मुझको इस आग से बचाओ मेरे दोस्तों ( औरतें ) / रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

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  मैं साइमन , न्याय के कटघरे में खड़ा हूं । प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें । मैं वहां से बोल रहा हूं , जहां मोहनजोदाड़ो के तालाब की आखिरी सीढ़ी है । जिस पर एक औरत की जली हुई लाश पड़ी है , और तालाब में इंसानों की हड्डियां बिखरी पड़ी हैं । इसी तरह एक औरत जली हुई लाश , आपको बेबिलोनियां में भी मिल जाएगी । और इसी तरह इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मेसोपोटामियां में भी । मैं सोचता हूं , और बारहा सोचता हूं , कि आखिर क्या बात है कि प्राचीन सभ्यताओं के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश मिलती है । और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियां मिलती हैं , जिनका सिलसिला सीथिया के चट्टानों से लेकर बंगाल के मैदानों तक , और सवाना के जंगलों से लेकर कान्हा के वनों तक चलता जाता है । एक औरत जो मां हो सकती है , बहिन हो सकती है , बीबी हो सकती है , बेटी हो सकती है , मैं कहता हूं , तुम हट जाओ मेरे सामने से मेरा खून कलकला रहा है । मेरा कलेजा सुलग रहा है मेरी देह जल रही है मेरी मां को, मेरी बहिन को, मेरी बीबी को मेरी बेटी को मारा गया है । मेरी पुरख़िनें , आसमान में आर्तनाद कर रही हैं । मैं इस औरत की जली हुई लाश पर सर पट...

मशक़्क़त / मजदूर / बच्चा लाल 'उन्मेष'

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 मशक़्क़त ------------ मैं मजदूर हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर मजदूर भेजूंगा कहूंगा खुद ही बना लो अपने मन्दिर और मस्जिद शायद समझ पाओ  दुनिया बनाना आसान है दुनिया बसाने से कहीं..  मैं किसान हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर किसान भेजूंगा कहूंगा खुद ही उगा लो अपने अक्षत के दाने शायद समझ पाओ ईश्वर होना आसान है  किसान होने से कहीं..  मैं इंसान हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर इंसान भेजूंगा किसी दलित बस्ती में कहूंगा जी कर दिखाओ तमाम भेदभावों के साथ शायद समझ पाओ यहाँ इंसान बनना दूभर है इंसान होने से कहीं..  मैं वनवासी हूँ!  कभी मौका मिला तो बनाकर वनवासी भेजूंगा कहूंगा बचा कर दिखाओ जंगल पूंजीवाद की आरी से शायद समझ पाओ जंगल उगाना आसान है एक पेड़ बचाने से कहीं..  मैं औरत हूँ कभी मौका मिला तो बनाकर औरत भेजूंगी कहूंगी अब पहचान बनाओ तमाम बंदिशों से लड़कर शायद समझ पाओ आदमी होना आसान है औरत होने से कहीं...  ~बच्चा लाल 'उन्मेष'

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो / सफ़दर हाशमी

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 पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलाने वालो अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है क ख ग घ को पहचानो अलिफ़ को पढ़ना सीखो अ आ इ ई को हथियार बनाकर लड़ना सीखो पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं? पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं? पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं? पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं? पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो ००००० सफ़दर हाशमी

औरतें/ रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

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कुछ औरतों ने अपनी इच्छा से कूदकर जान दी थी, ऐसा पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज है । और कुछ औरतें अपनी इच्छा से चिता में जलकर मरी थीं, ऐसा धर्म की किताबों में लिखा हुआ है। मैं कवि हूँ, कर्त्ता हूँ क्या जल्दी है । मैं एक दिन पुलिस और पुरोहित दोनों को एक साथ औरतों की अदालत में तलब करूँगा। और बीच की सारी अदालतों को मंसूख कर दूँगा । मैं उन दावों को भी मंसूख कर दूंगा , जो श्रीमानों ने औरतों और बच्चों के खिलाफ पेश किए हैं । मैं उन डिग्रियों को भी निरस्त कर दूंगा , जिन्हें लेकर फ़ौजें और तुलबा चलते हैं । मैं उन वसीयतों को खारिज कर दूंगा , जो दुर्बलों ने भुजबलों के नाम की होंगी । मैं उन औरतों को जो अपनी इच्छा से कुएं में कूदकर  और चिता में जलकर मरी हैं , फिर से ज़िंदा करूँगा  और उनके बयानात दोबारा कलमबंद करूँगा । कि कहीं कुछ छूट तो नहीं गया? कहीं कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया? कि कहीं कोई भूल तो नहीं हुई? क्योंकि मैं उस औरत के बारे में जानता हूँ , जो अपने सात बित्ते की देह को एक बित्ते के आंगन में ता-जिंदगी समोए रही और कभी बाहर झाँका तक नहीं, और जब बाहर निकली तो वह कहीं उसकी लाश निकली जो खुले मे...